Friday, August 19, 2011

अफसानानिगार और जिंसी मसाइल-2




       जब किसी अच्छे खानदान की जवान, सेहतमंद और खूबसूरत लड़की किसी मरियल, बदसूरत और कलाश लड़के के साथ भाग जाती है तो हम उसे मलऊन करार नहीं देंगे। दूसरे उस लड़की को माज़ी, हाल और मुस्तकबिल अखलाक की फांसी में लटका देंगे लेकिन हम वह छोटी सी गिरह खोलने की कोशिश करेंगे जिसने उस लड़की के इद्राक को बेहिस किया।

इंसान एक दूसरे से कोई ज्यादा मुख्तलिफ नहीं है। जो गलती एक मर्द करता है, दूसरा भी कर सकता है। जब एक औरत बाज़ार में दूकान लगाकर अपना जिस्म बेच सकती है तो दुनिया की सब औरतें ऐसा कर सकती हैं। गलतकार इंसान नहीं, वह हालता हैं जिनकी खेतों में इंसान अपनी गलतियां पैदा करता है और उनकी फस्लें काटता है। 

ज्यादातर जिंसी मसाइल ही आज के नए अदीबों की तवज्जोह का मर्कज़ क्यों बने हैं, इसका जवाब मालूम करना कोई ज्यादा मुश्किल काम नहीं। यह ज़माना अजीबो-गरीब किस्म के अज्दाद का ज़माना है। औरत करीब भी है, दूर भी। कहीं मादरज़ाद बरहनंगी नज़र आती है, कहीं सिर से लेकर पैर तक सत्र। कहीं औरत मर्द के भेस में दिखाई देती है, कहीं मर्द औरत के भेस में।

दुनिया एक बहुत बड़ी करवट ले रही है। हिंदुस्तान भी, जहां आज़ादी का नन्हा मुन्ना बच्चा गुलामी के दामन से अपने आंसू पोंछ रहा है, मिट्टी का नया घरौंदा बनाने के लिए जि़द कर रहा है - मशरिकी तहज़ीब की चोली के बंद कभी खोले जाते हैं, कभी बंद किए जाते हैं मगरिबी तहजीब के चेहरे का ग़ाज़ा कभी हटाया जाता है, कभी लगाया जाता है। एक अफरातफरी सी मची है - नए खटबुने पुरानी खाटों की मूंज उधेड़ रहे हैं। कोई कहता है इसे जिंदा रहने दो। कोई कहता इसे, नहीं इसे फना कर दो। इस धांधली में, इस शोरिश में हम नए लिखने वाले अपने कलम संभाले कभी इस मसले से टकराते हैं, कभी उस मसले से। 

अगर हमारी तहरीरों में औरत और मर्द के ताल्लुकात का जिक्र आपको ज्यादा नज़र आए तो यह एक फितरी बात है - मुल्क, मुल्क से सियासी तौर पर जुदा किए जा सकते हैं। एक मजहब दूसरे मजहब से अकीदों की बिना पर अलहदा किया जा सकता है। दो ज़मीनों को एक कानून एक दूसरे से बेगाना कर सकता है लेकिन कोई सियासत, कोई अकीदा, कोई कानून औरत मर्द को एक दूसरे से दूर नहीं कर सकता। 

औरत और मर्द में जो फासला है, उसको उबूर करने की कोशिश हर ज़माने में होती रहेगी। औरत और मर्द में जो एक लरज़ती हुई दीवार हाइल है, उसे संभालने और गिराने की सई हर सदी, हर कर्न में होती रही है, जो उसे उरियानी समझते हैं, उन्हें अपने एहसास के नंग पर अफसोस होना चाहिए। जो उसे अखलाक की कसौटी पर परखते हैं, उन्हें मालूम होना चाहिए कि अखलाक जंग है जो समाज के उस्तरे पर बेएहतियाती से जम गया है। 

जो समझते हैं कि नए अदब ने जिंसी मसाइल पैदा किए हैं, गलती पर हैं क्योंकि हकीकत यह है कि जिंसी मसाइल ने इस नए अदब को पैदा किया है, यह नया अदब जिसमें आप कभी कभी अपना ही अक्स देखते हैं और झंुझला उठते हैं - हकीकत ख्वाह शक्कर ही में लपेटकर पेश की जाए, उसकी कड़वाहट दूर नहीं होगी। 

हमारी तहरीरें आपकी कड़वी और कसैली लगती हैं मगर अब तक जो मिठासें आपको पेश की जाती रहीं हैं, उनसे इंसानियत को क्या फाइदा हुआ है ? नीम के पत्ते कड़वे सही मगर खून जरूर साफ करते हैं। 
- सआदत हसन मंटो

4 comments:

  1. ultimate........मंटो कब तफसील से ओर तसल्ली से लिखते थे ..ओर कब सरसरी तौर से ......जाहिर हो जाता है ...
    love this...

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  2. व्यावहारिक मजबूरियों के तहत मैं बस उन्ही कुछ ब्लॉग को पढ़-देख पाता हूँ जो मेरे ब्लॉग रोल में हैं. टेम्पलेट वगैरह बदलने में मेरे ब्लॉग रोल से ब्लॉग मिट गए थे. कई को याद करके जोड़ा था. कुछ रह गए. सोचालय तो मुझे याद था सो वो जुड़ा था, बैरंग जेहन से उतर गया था. आज अभी जोड़ लिया है.

    आपके लिंक देने के बाद बैरंग पर आज कई पोस्ट देखी. बहुत सुन्दर चयन के साथ चला रहा हैं आप इसे. और अब मुझे लग रहा है कि सचमुच मंटो पर वह लेख यहाँ ज्यादा मौजूं होता. यदि आप चाहे तो उसे कॉपी-पेस्ट कर लें. मुझे बहुत खुशी होगी.

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जाती सासें 'बीते' लम्हें
आती सासें 'यादें' बैरंग.

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