Sunday, December 4, 2011

एक चक्र

पाओलो कोएलो की रचना 'THE ZAHIR' का एक अंश...
एक सुबह एक किसान ने एक मठ के दरवाजे को जोर से खटखटाया.जब दरबान ने दरवाज़ा खोला,किसान ने उसकी और अंगूरों का एक गुच्छा बढाया.
'प्यारे दरबान!ये मेरे खेत के सबसे अच्छे अंगूर है.कृप्या इन्हें मेरी और से उपहार के रूप में स्वीकार करें.'
'अरे क्यों,बहुत-बहुत शुक्रिया.मैं इनको सीधे मठादीश के पास ले जाऊंगा.वो ऐसे उपहार से खुश हो जायेंगे.'
'नहीं ! मैं ये तुम्हारे लिए लाया हूँ.'
'मेरे लिए ? लेकिन मैं तो कुदरत के ऐसे उपहार के लायक नहीं हूँ.'
'जब-जब मैंने दरवाजे पर दस्तक दी है इसे तुम्हीं ने खोला है.जब सूखे से फसल बरबाद हो गयी तब तुम्हीं ने मुझे रोटी और एक ग्लास शराब हर दिन दी है.मैं चाहता हूँ की अंगूरों का ये गुच्छा तुम्हारे लिए सूरज का थोड़ा सा प्यार,वर्ष का सौंदर्य और ईश्वर की चमत्कारी शक्ति तुम तक पहुंचाए.'
दरबान ने अंगूरों को वहां रख दिया,जहाँ वह उनको देख सके और पूरी सुबह उनकी मन ही मन तारीफ़ करने में बिता दी:वह सच में ही प्यारे थे.इसलिए उसने उनको मठादीश को समर्पित करना तय कर लिया.जिसके विवेकशील शब्द उसके लिए वरदान की तरह रहे थे.
अंगूरों से मठादीश बहुत प्रसन्न हुआ लेकिन तभी उसे याद आया की एक मठवासी बीमार है और उसने सोचा,'मैं यह अंगूर उसको दूंगा.कौन जाने कि इससे उसके जीवन में कुछ ख़ुशी आ जाये.'
लेकिन बीमार मठवासी के कमरे में अंगूर ज्यादा देर तक नहीं रहे क्योंकि उसने सोचा-'रसोईये ने मेरा इतना ध्यान रखा है,खाने के लिए मुझे अच्छे से अच्छा भोजन दिया है.मुझे यकीन है कि यह अंगूर उसे खुशी देंगे.'जब रसोईया दोपहर का खाना ले कर आया,तो मठवासी ने अंगूर उसे दे दिए.
'ये तुम्हारे लिए है,तुम प्रकृति के दिए हुए उपहारों के इतने पास रहते हो और तुम ही जान पाओगे कि इनका,ईश्वर की इस देन  का क्या करना है.'
अंगूरों के सौंदर्य पर रसोईया अवाक था,उसने अपने सहायक का ध्यान उनकी निर्दोषता की और दिलाया.वे इतने अच्छे थे कि उनकी सराहना शायद ब्रदर साक्रिस्तान से अधिक और कोई नहीं कर सकताथा,जो पवित्र संस्कार विधि के मुखिया थे जिनको मठवासी सच्चा संत मानते थे.
लेकिन ब्रदर साक्रिस्तान ने वे अंगूर सबसे छोटे एक लड़के को दिए,जो दीक्षा प्राप्त करने नया-नया आया था,ताकि वह समझ सके कि ईश्वरीय कार्य सृष्टि की छोटी से छोटी चीज़ में भी दिखता है.नवदीक्षित हृदय ईश्वर की महिमा से भर उठा.उसने इससे फले अंगूरों का इतना सुंदर गुच्छा पहले कभी नहीं देखा था.साथ ही उसे उस पहले दिन की याद आई जब वह मठ में आया था और उसकी भी जिसने दरवाज़ा खोला था,दरवाज़ा खुलने के संकेत से ही वह वहाँ लोगों के बीच था जो चमत्कारों का मूल्य जानते हैं.
अँधेरा होने से कुछ पहले वह अंगूर दरबान के पास ले गया.'इन्हें कहा कर आनन्द लो.तुम अपना अधिकतर समय यहाँ अकेले बिताते हो,इन अंगूरों से तुम्हें अच्छा लगेगा.'
तब दरबान ने समझ लिया की वह उपहार सच में उसके लिए ही था,उसने एक-एक अंगूर को स्वाद ले कर खाया और खुश होकर सोने चला गया.

5 comments:

  1. http://hindi.fakingnews.com/2011/10/after-seven-years-gift-came-back-to-its-original-buyer/

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  2. सच्ची स्वार्थपरतता विरल होती है.सच्चा दंभ भी.. (ऐस इन गीता).
    हम सब विनम्र होना चाहते है..महान और यही हमारा बंधन है..
    पोस्ट के लिये
    \नाम छोटे और ’दर्शन’ बड़े\

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  3. I am planning to read this novel "the zahir" since last two months. and after reading your post I have determined to read it.

    wonderfull story;;
    jitendra

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  4. एक अच्छी कहानी का अंश है या पूरी कहानी पता नहीं ... पर बहुत ही प्रेरणा दायक ... लाजवाब ...

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जाती सासें 'बीते' लम्हें
आती सासें 'यादें' बैरंग.

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